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नाग पंचमी 2020 : नाग पंचमी पर ऐसे करेंगे पूजा तो दूर होगा काल सर्प दोष, प्रसन्न होंगे नाग देवता

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हम सब जानते ही हैं कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी का पावन त्योहार मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है और उनसे सुख-समृद्धि का वरदान मांगा जाता है। वहीं खास तरह से नाग देवता की पूजा करके आप काल सर्प दोष से भी मुक्त हो सकते हैं और आपको नाग देवता का वरदान भी मिल सकता है।

ऐसे करें नाग देवता की पूजा

ऎसी मान्यता है कि इस दिन सर्प को दूध से स्नान कराने से सांप का भय नहीं रहता है।

– भारत के अलग- अलग प्रांतों में इसे अलग- अलग ढंग से मनाया जाता है।

– केरल के मंदिरों में भी इस दिन शेषनाग की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

इस दिन घर की महिलाएं उपवास रखती है और पूरे विधि विधान से नाग देवता की पूजा करती है। माना जाता है कि इससे परिवार की सुख -समृ्द्धि में वृ्द्धि होती है और परिवार को सर्पदंश का भय नहीं रह्ता है।

– श्रावण मास में विशेषकर नाग पंचमी के दिन, धरती खोदना या धरती में हल, नींव खोदना मना होता है।

– पूजा के वक्त नाग देवता का आह्वान कर उसे बैठने के लिये आसन देना चाहिए। उसके पश्चात जल, पुष्प और चंदन का अर्ध्य देना चाहिए।

– नाग प्रतिमा का दूध, दही, घृ्त, मधु ओर शर्कर का पंचामृ्त बनाकर स्नान करना चाहिए। उसके पश्चात प्रतिमा पर चंदन, गंध से युक्त जल चढाना चाहिए।

– इसके पश्चात वस्त्र सौभाग्य सूत्र, चंदन, हरिद्रा, चूर्ण, कुमकुम, सिंदूर, बिलपत्र, आभूषण और पुष्प माला, सौभाग्य द्र्व्य, धूप दीप, नैवेद्ध, ऋतु फल, तांबूल चढाने के लिये आरती करनी चाहिए।

इस प्रकार पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। इस दिन नागदेव की पूजा सुगंधित पुष्प, चंदन से करनी चाहिए क्योंकि नागदेव को सुगन्ध विशेष प्रिय होती है।

नाग पंचमी में कालसर्प-योग की शान्ति हेतु पूजन का विशेष महत्व शास्त्रों में वर्णित है। तो विशेष पूजा से भगवान भोलेनाथ और नाग देवता दोनों प्रसन्न हो जाएंगे।

नागों को अपने जटाजूट तथा गले में धारण करने के कारण ही भगवान शिव को काल का देवता कहा गया है।

नाग पूजा का महत्व

नाग पूजा से हर तरह के दुःखों से मुक्ति तथा विद्या, बुद्धि, बल एवं चातुर्य की प्राप्ति होती है। सर्प-दंश का भय तो समाप्त होता ही है, साथ ही जन्म-कुंडली में स्थित कालसर्प योग की शान्ति भी होती है।

नाग-पूजन से पद्म-तक्षक जैसे नागगण संतुष्ट होते हैं तथा पूजन कर्ता को सात कुल (वंश) तक नाग-भय नहीं होता।

तो इसलिए मनाई जाती है नागपंचमी

पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि शापित महाराज परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नाग जाति को समाप्त करने के संकल्प से नाग-यज्ञ किया, जिससे सभी जाति-प्रजाति के नाग भस्म होने लगे; किन्तु अत्यन्त अनुनय-विनय के कारण पद्म एवं तक्षक नामक नाग देवों को ऋषि अगस्त से अभयदान प्राप्त हो गया।

अभयदान प्राप्त दोनों नागों से ऋषि ने यह वचन लिया कि श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को जो भू-लोकवासी नाग का पूजन करेंगे, हे पद्म-तक्षक! तुम्हारे वंश में उत्पन्न कोई भी नाग उन्हें आघात नहीं करेगा।

तब से इस पर्व की परम्परा प्रारम्भ हुई, जो वर्तमान तक अनवरत चले आ रहे इस पर्व को नाग पंचमी के नाम से ख्याति मिली।

आज भी इसी वजह से नागों की पूजा करके नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है।


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