किसानों के साथ बैंकों का रवैया
कई बार कई किसानों से बात हुई KCC संबंध में किसान बहुत ही परेशान थे। मैंने सभी किसानों को बैंक में मिलने के लिए कहा। कोरोना की वजह से नहीं मिल पा रहे थे। तो मैं एक बार बैंक गया तो अंदर प्रवेश से मना कर दिया गया। बैंक मैनेजर को ईमेल भी भेजी। कुछ जवाब नहीं मिला। बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर और अधिकारियों को भी लिखा। हल्का-फुल्का जवाब मिला। इस दौरान अलग-अलग किसानों से मिलता रहा। उनका समस्या को जाना, उसके बाद फरवरी माह के लास्ट सप्ताह में केसीसी के लिए सीएससी से भी रजिस्ट्रेशन करवा दिया।
जवाब का इंतजार था 15 से 20 दिन बीत गए ना ही जवाब आया इसी दौरान कोरोना को देखते हुए केंद्र सरकार ने लॉकडाउन लगा दी। आखिरकार लॉक डाउन जून माह में खुली तब जून के आखिरी सप्ताह में बैंक मैनेजर से मिलने गए तो करोना का बहाना कर अपने बातों से, अपने कार्यों से बच निकले। जुलाई के पहले सप्ताह में बैंक मैनेजर से मिलकर रजिस्ट्रेशन एवं रेफरेंस नम्बर बताने पर कुछ भी समझ पाने में असमर्थता बतायी। केसीसी के सम्बन्ध में और पुछने पर मैनेजर साहब ने लोन रिकवरी की चिंता जाहिर करते हुए टालम टोल प्रदर्शित किया। उन्हें अपने बैंक के अरबों के एनपीए का अहसास नहीं है पर किसान की नियत पर शक है। उस किसान की नियत पर शक है जिनकी मेहनत के कमाये अन्न से यह देश जिंदा है।
मैनेजर साहब को केसीसी हेतु आवश्यक दस्तावेजों हेतु पुछने पर इस हेतु पटवारी से मिलने की सलाह दी। उन्होंने रिसीविंग तक नहीं दिया। जबकि प्रधानमंत्री जी का एक ही आदेश था कि जिन किसानों को प्रधानमंत्री सम्मान निधि योजना का लाभ मिल रहा है वह एक साधारण सा फॉर्म भर के बैंकों में जमा करें बैंक उसे जांच कर 15 दिनों के अंदर केसीसी निर्गत कर आएगी यह प्रक्रिया पूरी तरह से डिस्टल थी पर बैंक मैनेजर किसानों को चक्कर लगा लगा कर लौट आ रहे हैं।
मैंने इन दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय को किसान क्रेडिट कार्ड में आने वाली समस्याओं से अवगत कराते हुए इसके प्रभावी निदान के सुझाव में सरकारी विभागों में आपसी समन्वय को आवश्यक बताया। बैंक मैनेजर को और पुछने पर खेत देखकर आय व्यय के अनुमान की बात भी की। और उसके बाद विचार करने को कहा। कुल मिलाकर उनका रवैया किसान विरोधी लगा।
सारे देश ने कोरोना संकट के दौरान अन्नदाता किसान की महत्ता समझी पर बैंकिंग जगत को अभी समझ आना बाकी ही रह गया है। ऐसे नकारात्मक लोग जब तक हमारे तंत्र में है किसानों के लिए तैयार शानदार से शानदार योजनाओं को ये लोग धराशाई करते रहेंगे और किसान का भला नहीं होने देंगे। जिस दिन किसान ने अनाज, फल सब्जी और दुध देना बंद कर दिया तो बैंकिंग ही नहीं सारे तंत्र की अक्ल ठिकाने आ जायेगी।
यह अनुभव काफी दुखद अनुभव रहा। अपने आप को पत्रकार के बजाय किसान कहने में गौरव का अनुभव करता हूं। पर लगा कि हमारे समाज और राष्ट्र में किसान की जो गरिमा 1940 में थी आजाद भारत के हमारे तंत्र ने उस गरिमा को तार तार कर दिया है। और यही इस राष्ट्र की दुर्दशा का एक कारण है।
आज इस बात की भी आवश्यकता है कि हमारे तंत्र को चलाने वाले जिम्मेवार लोगों को हमारे राष्ट्र के मुख्य घटकों के हितों में समन्वय का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। समय-समय सबका पर आकलन भी हो। और खरे नहीं उतरने पर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने के इंतजाम भी आवश्यक है।
आज एक शानदार अपडेट और प्रधानमंत्री जी को एक पत्र लिखने की इच्छा थी पर एनपीए के आंकड़े नहीं जुटा पाया।
किसान का लोन एक दो लाख का होता है। और मैनेजर का यह रवैया था। एक करोड़ के लोन की बात की होती तो सलीके से बात होती। 10 करोड़ के लोन की बात पर मैनेजर साहब गंभीरता से बात करते। और 1000 करोड़ के लोन की चर्चा के लिए मैनेजर साहब खुद डिस्कस करने चले आते। गजब है आजाद भारत का यह आजाद तंत्र। भगवान बचाए ऐसे लोगों से।
क्या यहां बैंक मैनेजर बिचौलियों को आने का आवाहन (रास्ता) नहीं खोल रहे हैं इस तरीके से माहौल बनाना किसानों को बैंकों का चक्कर लगाकर लौटा देना, क्या बैंक कर्मचारियों का इस तरीके से किसानों के साथ व्यवहार सही है।