बिहार का एक ऐसा अनोखा मंदिर; जहां रोट चढ़ाने से होती है हर मनोकामना पूरी
सकरा,मुजफ्फरपुर :- मंदिरों में आपने श्रद्धालुओं के द्वारा देवी-देवताओं को फल-फुल, जल ,दूध चढ़ाते हुए देखा होगा लेकिन कभी उन्हें किसी भगवान को रोट चढ़ाते हुए देखा है? या सुना है। आपको बता दें कि बिहार में एक ऐसा अनोखा मंदिर है जो ऐसी अनूठी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। यह बिहार के मुजफ्फरपुर जिला अंतर्गत सकरा प्रखंड के जगदीशपुर बघनगरी पंचायत के सरैया गांव में मौजूद है ।

किस नाम से प्रसिद्ध है मंदिर:
बाबा संतपुरी मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए रोट चढ़ाते हैं। बिहार के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले लोग इस दिन के उत्सव को रोट मेला के रूप मे जानते है।
क्यों आते हैं यहां भक्त
मंदिर के संदर्भ में लोगों का कहना है कि बाबा संतपुरी जी महाराज जिंदा समाधि सैकड़ों वर्ष पूर्व लिए थे। सर्वोदय उच्च विद्यालय में प्रधानाध्यापक के पद पर रह चुके सरैया गांव निवासी चंद्रिका प्रसाद सिंह अभी 76 वर्ष के है उन्होंने कहा कि बाबा की महिमा अपरंपार थी । उनके पूर्वजों का कहना था कि बाबा ने जिंदा समाधि लेकर लोगों को काल ग्रस्त क्षेत्र होने से बचाया था । उनकी कई जिंदा मिसाल आज भी लोग विभिन्न कहानी के रूप में कहते हैं । गांव के बुजुर्ग अशोक सिंह ,रामनिरंजन सिंह ने बताया कि उनके पूर्वजों का कहना है की आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन बाबा ने समाधी ली थी ,उसी दिन लोग मंदिर पर आकर रोट चढ़ाते हैं तथा मन्नते मांगते हैं । सच्चे मन से भक्त जो भी आराधना करते हैं उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है । हर वर्ष निश्चित दिन व तारीख पर मंदिर को लोग सजाते है तथा पुजा अर्चना कर मंन्नत मांगते है। पुरानी परंपरा के अनुसार ग्रामीणों के द्वारा इस मंदिर पर सैंकड़ों वर्षो से रोट चठाए जाते है. और जो नहीं चठा पाते वह वापस लौट कर रोट चढ़ाने के लिए आते हैं । कहते हैं कि आसपास के लोग किसी भी तरह का मांगलिक कार्य करने से पहले बाबा संत पुरी के मंदिर पर आकर पूजा अर्चना करते हैं तथा रोट चढ़ाते हैं उसके बाद ही किसी भी मांगलिक कार्य की शुरुआत करते है।